NOT KNOWN FACTS ABOUT अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

Not known Facts About अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

Not known Facts About अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

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आचार्य प्रशांत: ईगो (अहंकार) का सांकेतिक, शाब्दिक, आध्यात्मिक सब एक ही अर्थ होता है – ‘मैं’। ‘मैं’ की भावना को अहम्, ईगो कहते हैं।

ये आदमी अब ज्ञान की तलाश में है। लेकिन एक बात इसने भी अभी पकड़ रखी है, क्या? कि ये कोई है और इसे कुछ चाहिए। राजसिक आदमी को भी कुछ चाहिए था, उसने कहा, “संसार में मिलेगा।” सात्विक आदमी को भी कुछ चाहिए था, उसने कहा, “भीतर मिलेगा, ज्ञान में मिलेगा।”

आचार्य: जी, बहुत मीठी बात है। बड़े प्रेम से बोल रहे हैं आप और बात सही भी है।

बुध ग्रह करेंगे अपनी स्वराशि कन्या में प्रवेश, इन राशियों का चमक सकता है भाग्य

हुआ था। उन्होंने अभाव और गरीबी को करीब से देखा और महससू किया। उनके पास अपने लिए

एक हॉकी स्टिक तक खरीदने के पैसे नहीं थे। शुरू में तो दोस्तों से उधार लेकर और

आचार्य: उसका होना ही दिक़्क़त है, उसे याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है। वो जब भी है, जहाँ भी है, जैसा भी है उसे लगातार दिक़्क़त है। वो अगर दाएँ जा रहा है तो भी उसे दिक़्क़त है, वो बाएँ जा रहा है तो भी उसे दिक़्क़त है। उसे बहुत खाने को मिल गया तो भी दिक़्क़त है, उसे कुछ नहीं मिला तो भी दिक़्क़त है। वो हार गया तो भी दिक़्क़त है, वो जीत गया तो भी दिक़्क़त है। उसका नाम ही दिक़्क़त है, उसकी हस्ती ही दिक़्क़त है।

ठीक है, उसने तुम्हें बहुत परेशान किया। एक बार को तुम जंगल भाग गए, पर तुम हो कौन? जो परेशान होने को बहुत इच्छुक है। तो अब तुम कुछ तो वहाँ ख़ुराफ़ात करोगे न। हिरण को पछिया लोगे, पेड़ को खोदोगे, कोई खरगोश होगा उस पर कूदोगे। वो सटक लेगा और तुम गिरोगे, भाड़!

सिखाने की कोशिश की होगी कि सफलता पाकर घमंड नहीं करना चाहिए अपितु और अधिक नम्र

अरे! मजबूरियाँ बहुत होती हैं। आचार्य जी, आप समझते नहीं। मैं तो क्या करूँ, इत्ता सा हूँ, इत्ता सा, इत्ता सा', तो फिर आपके जीवन में कोई चमत्कार नहीं आने वाला। और अगर जीवन में चमत्कार नहीं है तो जीवन जीने लायक अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ नहीं है।

आचार्य: हाँ, डर जाता है बिलकुल! छोड़नेवाली कोई बात नहीं।

चुन लिया गया। उसके बाद शुरू हुई उनकी सफलता की कहानी और उन्होंने फिर कभी पीछे

बीते दिन भुला देना जरा भी समझदारी की बात नहीं है। धनराज की माँ ने उन्हें यही

नहीं, कई बार तो लोग अपनी गलतियाँ मानने को भी तैयार नहीं

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